अब जीत जाएंगे कोरोना से जंग, अमेरिका ने ढूंढ निकाला वायरस का तोड़!
दुनिया
भर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस का इलाज ढूंढने में लगे हैं, इसी बीच
शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान कोविड-19 के
मरीजों पर रेमडेसिवीर का काफी अच्छा असर हो रहा है और उसके परिणाम अच्छे
हैं।
नई दिल्ली: दुनिया के ज्यादातर देश इस समय कोरोना के संकट से जूझ रहे हैं। विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में कोरोना ने सबसे ज्यादा कहर मचाया हुआ है। यहां पर इस बीमारी से संक्रमित लोगों की तादाद 8 लाख के करीब पहुंच गई है, जबकि इससे मरने वालों की संख्या भी 40 हजार के पार हो गई है। हालांकि अब अमेरिका ने कोरोना का तोड़ ढूंढ निकाला है।
दुनिया
भर के वैज्ञानिक कोरोना वायरस का इलाज ढूंढने में लगे हैं, इसी बीच
शोधकर्ताओं ने दावा किया है कि क्लिनिकल ट्रायल के दौरान कोविड-19 के
मरीजों पर रेमडेसिवीर का काफी अच्छा असर हो रहा है और उसके परिणाम अच्छे
हैं। लेकिन वैज्ञानिकों ने इस दवा के प्रभाव को जांचने के लिए अधिक ट्रायल
करने की जरुरत बताई है।
अमेरिका के टेक्सास स्थित ह्यूस्टन मेथडिस्ट अस्पताल में कोरोना के शुरुआती दौर वाले मरीजों पर इस दवा का ट्रायल किया जाता है। जिसके बाद यह जानकारी मिली की दवा के शुरुआती परिणाम आशानजक हैं। इस दवा से को देने के बाद डॉक्टरों ने देखा कि यह कोरोना मरीजों की हालत को तेजी से बिगड़ने से रोकती है। इस साल की शुरुआत में ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इबोला के इलाज के लिए विकसित रेमडेसिवीर, कई सारे वायरस के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है।
चीन ने भी इस दवा को कोरोना से लड़ने के लिए कारागर बताया था। चीन ने कहा था कि रेमडेसिवीर सफलतापूर्वक कोरोना वायरस, सार्स-कोविड-2 को मनुष्य की कोशिकाओं में वृद्धि करने से रोक सकता है। इसके साथ ही ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित एक अन्य रिसर्च के अनुसार कोरोना वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति को रेमडेसिवीर दिया गया और उसकी हालत में 24 घंटे के भीतर सुधार होने लगा।
अस्पताल ने एक बयान में कहा कि कोविड-19 के साथ सबसे चुनौतीपूर्ण बात यह है कि वह मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद जिस तरीके से अपनी संख्या में वृद्धि करता है। उसमें कहा गया है, इसी तरह कोविड-19 को अगर शुरुआती चरण में नहीं रोका गया तो वह व्यक्ति में श्वसन संबंधी परेशानी खड़ी कर सकता है और उसे वेंटिलेटर पर जाने को मजबूर कर सकता है। रेमडेसिवीर ने मानव कोशिका के भीतर कोरोना वायरस की वृद्धि को रोकने की क्षमता प्रदर्शित की है और अब मरीजों पर उसका क्लिनिकल ट्रायल चल रहा है।
नई दिल्ली: दुनिया के ज्यादातर देश इस समय कोरोना के संकट से जूझ रहे हैं। विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका में कोरोना ने सबसे ज्यादा कहर मचाया हुआ है। यहां पर इस बीमारी से संक्रमित लोगों की तादाद 8 लाख के करीब पहुंच गई है, जबकि इससे मरने वालों की संख्या भी 40 हजार के पार हो गई है। हालांकि अब अमेरिका ने कोरोना का तोड़ ढूंढ निकाला है।
अमेरिका के टेक्सास स्थित ह्यूस्टन मेथडिस्ट अस्पताल में कोरोना के शुरुआती दौर वाले मरीजों पर इस दवा का ट्रायल किया जाता है। जिसके बाद यह जानकारी मिली की दवा के शुरुआती परिणाम आशानजक हैं। इस दवा से को देने के बाद डॉक्टरों ने देखा कि यह कोरोना मरीजों की हालत को तेजी से बिगड़ने से रोकती है। इस साल की शुरुआत में ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इबोला के इलाज के लिए विकसित रेमडेसिवीर, कई सारे वायरस के इलाज में इस्तेमाल किया जा सकता है।
चीन ने भी इस दवा को कोरोना से लड़ने के लिए कारागर बताया था। चीन ने कहा था कि रेमडेसिवीर सफलतापूर्वक कोरोना वायरस, सार्स-कोविड-2 को मनुष्य की कोशिकाओं में वृद्धि करने से रोक सकता है। इसके साथ ही ‘न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन’ में प्रकाशित एक अन्य रिसर्च के अनुसार कोरोना वायरस से संक्रमित एक व्यक्ति को रेमडेसिवीर दिया गया और उसकी हालत में 24 घंटे के भीतर सुधार होने लगा।
अस्पताल ने एक बयान में कहा कि कोविड-19 के साथ सबसे चुनौतीपूर्ण बात यह है कि वह मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद जिस तरीके से अपनी संख्या में वृद्धि करता है। उसमें कहा गया है, इसी तरह कोविड-19 को अगर शुरुआती चरण में नहीं रोका गया तो वह व्यक्ति में श्वसन संबंधी परेशानी खड़ी कर सकता है और उसे वेंटिलेटर पर जाने को मजबूर कर सकता है। रेमडेसिवीर ने मानव कोशिका के भीतर कोरोना वायरस की वृद्धि को रोकने की क्षमता प्रदर्शित की है और अब मरीजों पर उसका क्लिनिकल ट्रायल चल रहा है।
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