कोरोना वायरस: लॉकडाउन में और दुकानें खोलने के लिए आए निर्देश



कोरोना वायरस: लॉकडाउन में और दुकानें खोलने के लिए आए निर्देश – प्रेस रिव्यू

कोरोना

केंद्रीय गृह मंत्रालय ने शुक्रवार देर रात दिशा निर्देश जारी करते हुए नगर पालिका के अंदर और बाहर आने वाली दुकानों को खोलने को लेकर नियमों में ढील दी.
द इंडियन एक्सप्रेस अख़बार के अनुसार, एक ओर जहां अहमदाबाद, सूरत, हैदराबाद और चेन्नई के इलाक़े 'बड़े हॉटस्पॉट ज़िले या उभरते हॉटस्पॉट' बनकर उभरे हैं वहीं दूसरी ओर सरकार ने ग्रामीण और शहरी इलाक़ों में दुकानों को खोलने को लेकर नियमों में ढील दी है.
हालांकि, यह दिशा निर्देश कोविड कंटेनमेंट ज़ोन और हॉटस्पॉट में लागू नहीं होंगे.
नए दिशा निर्देश के अनुसार, लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण इलाक़ों के मार्केट कॉम्प्लेक्स और रिहायशी इलाक़ों में सभी दुकानें खुल सकेंगी. नगर निगम की सीमा के बाहर सभी इलाक़ों को ग्रामीण इलाक़ा माना जा सकता है लेकिन इसमें शराब की दुकानें नहीं खुलेंगी.
मॉल और बड़े शॉपिंग कॉम्प्लेक्स अब भी ग्रामीण और शहरी इलाक़ों में नहीं खुल सकेंगे.

डिज़ास्टर मैनेजमेंट क़ानून के तहत राज्य इस दिशा निर्देश को चाहे तो नहीं भी लागू कर सकते हैं.
इस नए दिशा निर्देश को ग्रामीण क्षेत्र में लघु अर्थव्यवस्था को वापस खोलने के तौर पर देखा जा रहा है.
वाणिज्यिक और निजी प्रतिष्ठानों की श्रेणी के तहत अब दुकानें खुल सकती हैं. इसमें नगर पालिका के अंतर्गत आने वाले शहरी क्षेत्र शामिल हैं. लेकिन इसमें भी सिर्फ़ वही दुकानें खुल सकेंगी जो 'राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के दुकान एवं स्थापना अधिनियम' के तहत रजिस्टर्ड होंगी.

इसका अर्थ ये हुआ कि शराब की दुकानों समेत वो दुकानें नहीं खुल सकेंगी जो किसी और अधिनियम के तहत रजिस्टर्ड होंगी क्योंकि शराब की दुकान का रजिस्ट्रेशन एक्साइज़ क़ानून के तहत होता है.
शहरी क्षेत्र के मार्केट कॉम्प्लेक्स, सिंगल ब्रैंड और मल्टि ब्रैंड मॉल में मौजूद दुकानें अब भी नहीं खुल सकेंगी. हालांकि, नगर पालिका के बाहर क्षेत्र की 'आवासीय कॉम्प्लेक्स और मार्केट कॉम्प्लेक्स समेत सभी दुकानें' खुल सकेंगी.
इसके तहत दुकानों में सिर्फ़ '50 फ़ीसदी कर्मचारियों की क्षमता' ही काम करेगी और जिनको 'मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना' अति आवश्यक होगा.
वहीं, केंद्र ने गुजरात, तेलंगाना और तमिलनाडु के चार ज़िलों को निगरानी में रखा है जहां 5,000 से अधिक कोरोना संक्रमण के मामले हैं. 

डॉक्टर हर्षवर्धन

'ख़राब रैपिड एंटीबॉडी टेस्टिंग किट को वापस भेजेंगे'

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा है कि कोरोना वायरस के टेस्ट के लिए विदेशों से मंगाई गई जिन भी रैपिड एंटीबॉडी टेस्टिंग किट में ख़ामी पाई गई है उनको वापस भेजा जाएगा, चाहे वो चीन से आई हो या कहीं और से.
अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ़ इंडिया का कहना है कि वीडियों कॉन्फ़्रेंसिंग के दौरान केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने यह बातें कहीं.

कोविड-19 को लेकर किए जा रहे प्रयासों की समीक्षा करते हुए उन्होंने कहा, "एंटीबॉडी टेस्टिंट किट्स अगर ठीक से काम नहीं कर रही हैं तो उन्हें वापस किया जाएगा, चाहे वो चीन से आई हों या किसी और देश से. हमने किट के लिए अभी तक भुगतान नहीं किया है."
डॉक्टर हर्षवर्धन ने कहा कि टेस्ट के परिणाम अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग हो सकते हैं और इन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है. इसके परिणाम कितने सटीक हैं विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी इस पर टिपप्णी नहीं की है. टेस्ट और किट कितने सक्षम हैं आईसीएमआर इसकी समीक्षा कर रहा है और वह जल्द ही नए दिशा निर्देश के साथ सामने आएगा.

 दिल्ली दंगे

दिल्ली दंगे: छात्र नेता, पीएफ़आई पुलिस के रडार में

फ़रवरी में उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के मामले में दिल्ली पुलिस पॉप्युलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया (पीएफ़आई) और जामिया कॉर्डिनेशन कमिटी (जेसीसी) के कई सदस्यों पर कार्रवाई करने की तैयारी में है.
अंग्रज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जामिया मिल्लिया इस्लामिया के दो छात्रों और जेएनयू के पूर्व छात्र उमर ख़ालिद समेत चार लोगों पर ग़ैर-क़ानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम के तहत मामला दर्ज करने के बाद दिल्ली पुलिस कुछ और लोगों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने जा रही है.
अख़बार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि दिल्ली पुलिस पीएफ़आई, जेसीसी, पिंजरा तोड़, ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन के कई सदस्यों समेत दिल्ली विश्वविद्यालय और जेएनयू के पूर्व और वर्तमान छात्रों पर कार्रवाई कर सकती है.
इन सबके अलावा पुलिस की रडार में एक प्रोफ़ेसर भी है.
पुलिस सूत्रों का कहना है कि उसने जिन नौ लोगों को गिरफ़्तार किया है उनकी वॉट्सअप चैट से मालूम चला है कि ये सभी संगठन एक-दूसरे के संपर्क में थे.



 

सेप्सिवैक दवा, जिससे कोरोना के इलाज की है उम्मीद

सेप्सिवैक दवा, जिससे कोरोना के इलाज की है उम्मीद

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कोरोना वायरस (कोविड19) के इलाज के लिए लगातार दवाई और वैक्सीन बनाने की कोशिश की जा रही है. दुनिया भर में इसके लिए प्रयास हो रहे हैं.
इन्हीं कोशिशों में कुछ दवाइयों का ट्रायल किया जा रहा है जो कोविड19 के इलाज में मदद कर सकती हैं.
भारत में हाल ही में एक नई दवाई के क्लीनिकल ट्रायल को मंजूरी दी गई है. ये दवाई है सेप्सिवैक (Sepsivac).
इस दवाई का इस्तेमाल ग्राम नेगेटिव सेप्सिस बीमारी के इलाज में किया जाता है. 21 अप्रैल को इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने इस संबंध में जानकारी दी.
स्वास्थ्य मंत्रालय के सुंयक्त सचिव लव अग्रवाल ने बताया, “काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रीयल रिसर्च (सीएसआईआर) कोविड19 के गंभीर रूप से बीमार मरीज़ों में मृत्यु दर कम करने के लिए एक दवाई की क्षमता का मूल्यांकन करने के लिए क्लिनिकल ट्रायल की शुरुआत करेगा. ग्राम नेगेटिव सेप्सिस के मरीजों और कोविड19 मरीजों में क्लिनिकल लक्षणों की समानता होने के कारण ड्रग कंट्रोलर ऑफ इंडिया (डीसीजीआई) ने ट्रायल की अनुमति दे दी है जो जल्दी ही कई अस्पतालों में शुरू किया जाएगा.”


सेप्सिवैक के ट्रायल के लिए तीन अस्पताल चुने गए हैं. इनमें पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़, एम्स दिल्ली और भोपाल शामिल हैं. यहां पर 50 कोविड19 के मरीज़ों पर सेप्सिवैक का परीक्षण किया जाएगा.
सीएसआईआर के महानिदेशक डॉक्टर शेखर सी. मंडे बताते हैं, “कैडिला फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड ने इस दवाई का निर्माण किया है और सीएसआईआर के सहयोग से तीन अस्पतालों में परीक्षण किया जाएगा. तीन में से एक अस्पताल को एथिक्स कमिटी से अनुमति मिल गई है. बाकी दो को मंज़ूरी मिलना बाकी है. जैसे ही अनुमति मिल जाएगी वैसे ही हम ट्रायल शुरू करवा देंगे. कोविड19 के गंभीर मामलों वाले 50 मरीज़ों पर ये ट्रायल किया जाएगा.”

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तीन तरह के ट्रायल
सीएसआईआर ने डीसीजीआई से तीन अलग-अलग ट्रायल के लिए अनुमति मांगी थी. पहले ट्रायल में गंभीर मामलों वाले मरीजों पर परीक्षण होगा.
दूसरे में, जो मरीज आईसीयू में नहीं हैं लेकिन कोविड19 का इलाज करा रहे हैं उन पर थोड़ा बड़ा परीक्षण होगा.
तीसरे ट्रायल में, जो मरीज ठीक हो चुके हैं, उन्हें ये दवा देकर दुबारा कोविड19 होने से रोका जा सके, इसके लिए परीक्षण किया जाएगा.
सीएसआईआर का कहना है कि फिलहाल साफतौर पर ऐसे प्रमाण नहीं मिले हैं कि ठीक होने के बाद फिर से कोविड19 हुआ हो. हालांकि, इन तीनों ट्रायल के लिए मंज़ूरी मिल चुकी है. पहले ट्रायल में मरीज़ों की संख्या कम है तो इसके दो-तीन महीनों में नतीजे आ सकते हैं.
सेप्सिवैक दवा का निर्माण
फिलहाल सेप्सिवैक दवा एंटी ग्राम सेप्सिस में इस्तेमाल होती है.
अहमदाबाद की कैडिला फार्मास्यूटिकल्स ने सेप्सिवैक दवा का निर्माण किया है.
इस दवा का निर्माण सीएसआईआर के सहयोग से ग्राम-नेगेटिव सेप्सिस के मरीज़ों के इलाज के लिए किया गया था. ये प्रोजेक्ट सीएसआईआर की ‘न्यू मिलेनियम इंडियन टेक्नोलॉजी’ पहल के तहत चलाया गया था.
कंपनी को ग्राम नेगेटिव सेप्सिस के लिए इस दवा के क्लीनिकल ट्रायल में सफलता मिली थी.
कंपनी की वेबसाइट पर लिखा है, “सेप्सिवैक में माइकोबैक्टीरियम डब्ल्यू होता है जो सेप्सिस के मरीज़ों में प्रतिरक्षा (इम्यूनिटी) प्रतिक्रिया को नियंत्रित करता है. इस दवाई को सेप्सिस और सेप्टिक शॉक में इम्यूनोथेरेपी के इलाज के लिए डीसीजीआई से अनुमति प्राप्त है. इसके आकस्मिक ट्रायल में सेप्सिस के मरीज़ों में मृत्यु दर में 11 प्रतिशत पूर्ण कमी और 55.5 प्रतिशत सापेक्ष कमी देखी गई है. सेप्सिवैक के कारण वेंटिलेटर पर, आईसीयू में, अस्पताल में कम रहना पड़ता है.”
डॉक्टर शेखर मंडे भी कहते हैं कि सेप्सिस के ट्रायल में ये पाया गया था कि सेप्सिवैक कुल मृत्यु दर को 50 प्रतिशत से कम ले आता है. ये इंसान की प्रतिरक्षा प्रणाली को बूस्ट करता है यानी ताकत देता है. इसलिए कोविड19 के लिए भी इसके क्लीनिकल ट्रायल पर विचार किया गया.

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कैसे काम करती है सेप्सिवैक
इस ट्रायल का आधार है कि एंटी ग्राम सेप्सिस और कोविड19 के लक्षणों में कुछ समानता है इसलिए सेप्सिवैक दवा कोविड19 में भी मदद कर सकती है.
ऐसे में जानते हैं कि ये समानता क्या है और सेप्सिवैक दवा इसमें कैसे काम करती है.
सबसे पहले जानते हैं कि सेप्सिस क्या है. सेप्सिस एक ऐसी बीमारी है जो शरीर में किसी संक्रमण से होती है. इसमें हमारी रोग प्रतिरोधक प्रणाली अत्यधिक सक्रिय हो जाती है.
बीमारी की शुरुआत शरीर में किसी प्रकार के बैक्टीरियल संक्रमण से होती है. जैसे शरीर के किसी हिस्से में खरोंच या कट जाना, कीड़े का काट लेना.
लेकिन यदि संक्रमण शरीर में तेज गति से फैलने लगता है तो प्रतिरक्षा प्रणाली इसे रोकने के लिए उससे भी तेज गति से काम करना शुरू कर देती है.
ऐसे में प्रतिरक्षा प्रणाली वायरस के साथ-साथ स्वस्थ कोशिकाओं पर भी हमला करना शुरू कर देती है. इसकी वजह से शरीर में कई अंग काम करना बंद करने लगते है जैसे किडनी, लीवर आदि. इसमें मौत भी हो सकती है.
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क्या होता है ग्राम नेगेटिव सेप्सिस
सीएसआईआर की जम्मू स्थित लैब के निदेशक डॉक्टर राम विश्वकर्मा बताते हैं, “बैक्टीरियल इंफेक्शन दो तरह के होते हैं- एक ग्राम नेगेटिव और दूसरा ग्राम पॉजिटिव. सेप्सिस भी ग्राम नेगेटिव और ग्राम पॉजिटिव दोनों हो सकता है. ये दोनों अलग-अलग तरह के बैक्टीरिया से होते हैं. ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया सबसे खतरनाक होते हैं. हमारे पास उनकी ज़्यादा दवाइयां नहीं हैं. इसमें 50 से 60 प्रतिशत मामलों में मौत हो जाती है. अधिकतर एंटी-बायोटिक ग्राम पॉजिटिव के लिए हैं.”
“ग्राम नेगेटिव सेप्सिस में प्रतिरक्षा प्रणाली अतिसक्रिय हो जाती है और शरीर को नुक़सान पहुंचाने लगती है. इसे साइटोकाइन स्ट्रॉम भी कहा जाता है. कोविड19 के गंभीर मामलों में भी बिल्कुल यही देखने को मिला है. इसमें जब संक्रमण बहुत ज़्यादा बढ़ जाता है तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अतिसक्रिय हो जाती है. हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली उलझन में आ जाती है और वो स्वस्थ कोशिकाओं पर भी हमला कर देती है और इससे शरीर के अंग खराब होना शुरू हो जाते हैं.”
डॉक्टर राम विश्वकर्मा बताते हैं कि बीमारी में सेप्सिवैक शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाता है. प्रतिरक्षा प्रणाली के कई कॉम्पॉनेंट होते हैं. जो फायदेमंद इम्यूनिटी है ये दवाई उनको बढ़ाने में मदद करेगी और जो इम्यूनिटी अतिसक्रिय हो गई है उसे नियंत्रित करेगा. इम्यूनिटी के बिना इंसान ज़िंदा नहीं रह सकता लेकिन अगर अतिसक्रिय हो गई तो ये मार देती है.
डॉक्टर राम विश्वकर्मा कहते हैं, “एक अच्छी बात ये है कि सेप्सिवैक को ग्राम नेगेटिव सेप्सिस के लिए अनुमति मिल चुकी है. जब एक बार किसी दवाई को अनुमति मिल जाती है तो इसका मतलब है कि वो इंसानों के लिए सुरक्षित है. अब हमें ये देखना है कि ये दवाई कोविड19 में कोई फायदा कर सकती है या नहीं. इसे रिपर्पजिंग बोलते हैं यानी पुन: एक और उद्देश्य के लिए इस्तेमाल होना. बिल्कुल नई दवाई बनाने में सालों लग जाते हैं.”





कोरोना वायरस: मौत और मातम के बीच काम करने वाले डॉक्टरों ने बताया अपना अनुभव

कोरोना वायरस: मौत और मातम के बीच काम करने वाले डॉक्टरों ने बताया अपना अनुभव

कोरोना वायरस, डॉक्टर

डॉ. मिलिंद बाल्दी उस वक़्त कोविड-19 वॉर्ड में ड्यूटी पर थे जब 46 साल के एक शख़्स को सांस लेने की समस्या के साथ व्हील चेयर पर लाया गया.
वह व्यक्ति काफ़ी डरा हुआ था और लगातार एक ही सवाल पूछ रहा था, "क्या मैं ज़िंदा बच जाऊंगा?"
वो गुहार लगा रहे थे, "कृपया मुझे बचा लो, मैं मरना नहीं चाहता."
डॉ. बाल्दी ने भरोसा दिया कि वो बचाने की हरसंभव कोशिश करेंगे. यह दोनों के बीच आख़िरी बातचीत साबित हुई. मरीज़ को वेंटिलेटर पर रखा गया और दो दिन बाद मौत हो गई.
इंदौर के अस्पाल में जब मरीज़ को लाया उसके बाद के डरावने 30 मिनट को याद करते हुए डॉक्टर बाल्दी ने बताया, "वह मेरा हाथ पकड़े रहा. आँखों में डर भी था और दर्द भी. मैं उस चेहरा कभी नहीं भूल पाऊंगा."

 

उस मरीज़ की मौत ने डॉ. बाल्दी पर गहरा असर डाला है. उन्होंने बताया, "उसने मेरी आत्मा को अंदर से हिला दिया और दिल में एक शून्य छोड़ गया."
बाल्दी जैसे डॉक्टरों के लिए क्रिटिकल केयर वॉर्ड में मरीज़ों को मरते देखना कोई नई बात नहीं है. लेकिन वो कहते हैं कि मनोवैज्ञानिक तौर पर कोविड-19 वॉर्ड में काम करने की तुलना किसी से नहीं हो सकती.

डॉ. मिलिंद बाल्दी
डॉ. मिलिंद बाल्दी
अधिकांश कोरोनावायरस मरीज़ों को आइसोलेशन में रखा जाता है. इसका मतलब है कि गंभीर रूप से बीमार होने पर अंतिम समय में उनके आसपास डॉक्टर और नर्स ही मौजूद होते हैं.
दक्षिण भारत के इर्नाकुलम मेडिकल कॉलेज के क्रिटिकल केयर विभाग के प्रमुख डॉ. ए. फ़ताहुद्दीन ने कहा, "कोई भी डॉक्टर ऐसी स्थिति में रहना नहीं चाहेगा."
डॉक्टरों के मुताबिक़ भावनात्मक बातों को वे मरीज़ के परिवार वालों के साथ शेयर किया करते हैं लेकिन कोविड-19 उन्हें यह मौक़ा भी नहीं दे रहा है.
डॉ. फताहुद्दीन
डॉ. फताहुद्दी

डॉ. ए. फ़ताहुद्दीन ने बताया कि अस्पताल में कोविड-19 से मरने वाले एक मरीज़ की आंखों के सूनेपन को वे कभी नहीं भूल पाएंगे. उन्होंने बताया, "वह बात नहीं कर पा रहा था, लेकिन उसकी आंखों में दर्द और डर साफ़ नज़र आ रहा था."

उस मरीज़ के अंतिम समय में उसके आसपास कोई अपना मौजूद नहीं था. डॉ. फ़ताहुद्दीन इस बात को लेकर बेबस दिखे. लेकिन उन्हें एक उम्मीद दिखी- मरीज़ की पत्नी को भी कोरोना वायरस के इलाज के लिए इसी अस्पताल में लाया गया था.
डॉ. फताहुद्दीन उन्हें पति के वॉर्ड में लेकर आए. वहां उसने पति को गुडबाइ कहा. उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि 40 साल चली उनकी शादी का अंत अचानक इस तरह होगा.
अनुभवी डॉक्टर होने के बाद भी फताहुद्दीन ने बताया कि इस घटना उन्हें बेहद भावुक कर दिया. हालांकि उन्हें इस बात का संतोष भी है कि मरीज़ की मौत अपनी पत्नी को देखने के बाद हुई.
उन्होंने बताया, "लेकिन ऐसा हमेशा नहीं होता. कड़वा सच यही है कि कुछ मरीज़ों की मौत अपने परिजनों को गुडबाइ कहे बिना हो रही है."

डॉक्टर मीर शाहनवाज़
डॉक्टर मीर शाहनवाज़
डॉक्टरों पर भी इन सबका भावनात्मक असर होता है. ज्यादातर डॉक्टर अपने परिवार से दूर आइसोलेशन में रह रहे हैं लिहाजा परिवार की ओर से मिलने वाला भावनात्मक सहारा भी उन्हें नहीं मिल पाता है.
इसके असर के बारे में श्रीनगर के गर्वनमेंट चेस्ट हॉस्पीटल के डॉक्टर मीर शाहनवाज़ ने बताया, "हम लोगों को केवल बीमारी से ही नहीं लड़ना पड़ रहा है. हम नहीं जानते हैं कि अपने परिवार से कब मिल पाएंगे, हर पल संक्रमित होने का ख़तरा अलग है. ऐसी स्थिति में समझ में आता है कि हमलोग किस बड़े ख़तरे का सामना कर रह हैं."
इतना ही नहीं, इन तनावों के अलावा डॉक्टरों को मरीज़ों के भावनात्मक ग़ुस्से को झेलना पड़ता है.
डॉ. शाहनवाज़ ने बताया, "मरीज़ काफ़ी डरे होते हैं, हमें उन्हें शांत रखना होता है. हमें डॉक्टर के साथ-साथ उनके दोस्त की भूमिका भी निभानी होती है."
इसके अलावा डॉक्टरों को मरीज़ों के परिवार वालों को फ़ोन कॉल करने होते हैं और उनके डर और चिंताओं को भी सुनना होता है. डॉ. शाहनवाज़ के मुताबिक़ यह सब भावनात्मक रूप से काफ़ी थकाने वाला होता है.
उन्होंने कहा, "जब आप रात में अपने कमरे में पहुंचते हैं तो यह बातें आपको परेशान करती हैं. अनिश्चितता को लेकर डर भी होता है क्योंकि हमें नहीं मालूम कि हालात कितने ख़राब होंगे."

कोरोना वायरस, डॉक्टर 

शाहनवाज़ साथ में यह भी बताते हैं, "डॉक्टरों का काम दूसरों का जीवन बचाना होता है. हमलोग यह करते रहेंगे चाहे जो हो. लेकिन सच्चाई यह भी है कि हम लोग भी इंसान हैं, इसलिए हमें भी डर लगता है."
उन्होंने बताया कि उनके अस्पताल में कोरोना वायरस से हुई पहली मौत ने उनके साथियों के हिम्मत को तोड़ दिया था क्योंकि तब उन्हें पता चला था कि कोविड-19 मरीज़ को अपने परिजनों की अंतिम झलक देखने का मौक़ा भी नहीं देता है.
शाहनवाज़ ने बताया, "परिवार वाले मरीज़ के अंतिम पलों को याद रखना चाहते हैं, शिथिल पड़ती मुस्कान, कुछ अंतिम शब्द और भी कुछ जिसे सहेजा जा सके. लेकिन उन्होंने मृतक का ठीक से अंतिम संस्कार करने का मौक़ा नहीं मिलता."
डॉ. फ़ताहुद्दीन के मुताबिक़ ऐसे मनोवैज्ञानिक दबावों को समझे जाने की ज़रूरत है और इसलिए प्रत्येक अस्पताल में मरीज़ों के साथ-साथ डॉक्टरों के लिए भी एक मनोचिकित्सक को रखने की ज़रूरत है.
उन्होंने बताया, "मैंने अपने अस्पताल में ऐसा किया है. यह ज़रूरी है, नहीं तो भावनात्मक घाव इतने गहरे हो जाएंगे कि उन्हें भरना मुश्किल हो जाएगा. फ्रंटलाइन वर्करों में पोस्ट ट्रूमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर दिखाई देने लगे हैं."