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सुप्रीम कोर्ट ने लॉकडाउन के कारण वकीलों
को आर्थिक मदद और चैम्बर किराये में छूट संबंधी दो अलग-अलग याचिकाओं पर कोई
आदेश जारी करने यह कहते हुए गुरुवार को इन्कार कर दिया कि जब पूरा देश ही
कठिन दौर से गुजर रहा है तो वह वकीलों के लिए विशेष फंड बनाने का आदेश कैसे
दे सकता है?
न्यायमूर्ति एन वी रमन, न्यायमूर्ति संजय
किशन कौल और न्यायमूर्ति बी आर गवई की खंडपीठ ने दो याचिकाओं की संयुक्त
सुनवाई करते हुए कहा कि पूरा देश ही कठिन दौर से गुजर रहा है, फिर वह
वकीलों के लिए विशेष कोष बनाने का आदेश कैसे सकती है?
उन्होंने कहा, “पूरा देश आर्थिक तंगी से
गुज रहा है, ऐसे में वकीलों को छूट कैसे दे दें? हमारे पास वकीलों को देने
के लिए खुद का फंड भी नहीं है। वकीलों के हितों की रक्षा के लिए विधिज्ञ
परिषद है, लेकिन हम उसे इस संबंध में कोई आदेश नहीं दे सकते।”
याचिकाकर्ता पवन प्रकाश पाठक की दलील थी
कि लॉकडाउन में काम न होने के कारण बहुत से नए वकील आर्थिक परेशानी का
सामना कर रहे हैं। ऐसे वकीलों की आर्थिक मदद के लिए फंड बनाने का आदेश
जारी किया जाए, लेकिन न्यायमूर्ति रनम ने कोई भी आदेश जारी करने से इन्कार
कर दिया।
दूसरी याचिका सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन
की थी, जिसकी दलील थी कि लॉकडाउन की वजह से वकीलों की कमाई नहीं हो रही।
इसलिए उन्हें चैम्बर का किराया लॉकडाउन की अवधि में देने से छूट प्रदान की
जाए। एक वकील तभी किराया दे सकता है, जब वह खुद काम करके कमाए। न्यायालय ने
यह मांग भी यह कहते हुए खारिज कर दी, “वकीलों को कोई विशेष छूट कोर्ट नहीं
दे सकता। आज आप आए हैं, कल आर्किटेक्ट भी ऐसी मांग लेकर कोर्ट में आ
जाएंगें। परसों इंजीनियर भी सुप्रीम कोर्ट आ जाएंगे। देश के सभी तबके इन
दिनों प्रभावित हैं।”
न्यायमूर्ति रमन ने कहा, “कई मामलों में
बुजुर्ग मकान मालिक भी किराये पर निर्भर करता है। लॉकडाउन के कारण किराए पर
रहने वाले देश के बहुत से लोग परेशान है तो वकीलों को विशेष छूट क्यों
दें? कोर्ट वकीलों को विशेष या अलग कैटेगरी में नहीं रख सकता।” बाद में
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका वापस ले ली।